Friday, January 29, 2016

मस्सों का घरेलू इलाज

मस्सों की सरल घरेलु आयुर्वेदिक चिकित्सा
मस्सों को दुर करने के लिये अपनाएँ और शेयर कर के सबको बताएं
ये कारगर घरेलू नुस्खे।
मस्से सुंदरता पर दाग की तरह दिखाई देते हैं। मस्से होने का मुख्य
कारण पेपीलोमा वायरस है। त्वचा पर पेपीलोमा वायरस के आ
जाने से छोटे, खुरदुरे कठोर पिंड बन जाते हैं, जिन्हें मस्सा कहा
जाता है। पहले मस्से की समस्या अधेड़ उम्र के लोगों में अधिक
होती थी, लेकिन आजकल युवाओं में भी यह समस्या होने लगी
है। यदि आप भी मस्सों से परेशान हैं तो इनसे राहत पाने के लिए
कुछ घरेलू उपायों काे अपना सकते हैं। आइए, जानते हैं कुछ ऐसे ही
घरेलू नुस्खों के बारे में…..
1⇒ बेकिंग सोडा और अरंडी तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर
इस्तेमाल करने से मस्से धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं।
2⇒ बरगद के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही
असरदार होता है। इसके रस को त्वचा पर लगाने से त्वचा सौम्य
हो जाती है और मस्से अपने-आप गिर जाते हैं।
3⇒ ताजा अंजीर मसलकर इसकी कुछ मात्रा मस्से पर लगाएं।
30 मिनट तक लगा रहने दें। फिर गुनगुने पानी से धो लें। मस्से खत्म
हो जाएंगे।
4⇒ खट्टे सेब का जूस निकाल लीजिए। दिन में कम से कम तीन
बार मस्से पर लगाइए। मस्से धीरे-धीरे झड़ जाएंगे।
5⇒ चेहरे को अच्छी तरह धोएं और कॉटन को सिरके में भिगोकर
तिल-मस्सों पर लगाएं। दस मिनट बाद गर्म पानी से फेस धो लें।
कुछ दिनों में मस्से गायब हो जाएंगे।
6⇒ आलू को छीलकर उसकी फांक को मस्सों पर लगाने से मस्से
गायब हो जाते हैं।
7⇒ कच्चा लहसुन मस्सों पर लगाकर उस पर पट्टी बांधकर एक
सप्ताह तक रहने दें। एक सप्ताह बाद पट्टी खोलने पर आप पाएंगे
कि मस्से गायब हो गए हैं।
8⇒ मस्सों से जल्दी निजात पाने के लिए आप एलोवेरा के जैल
का भी उपयोग कर सकते हैं।
9⇒ हरे धनिए को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे रोजाना
मस्सों पर लगाएं।
10⇒ ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगाएं। ऐसा दिन में लगभग 3
या 4 बार करें। मस्से गायब हो जाएंगे।
11⇒ केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक
पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें,
जब तक कि मस्से खत्म नहीं हो जाते।
12⇒ मस्सों पर नियमित रूप से प्याज मलने से भी मस्से गायब हो
जाते हैं।
13⇒ फ्लॉस या धागे से मस्से को बांधकर दो से तीन सप्ताह
तक छोड़ दें। इससे मस्से में रक्त प्रवाह रुक जाएगा और वह खुद ही
निकल जाएगा।
14⇒ अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगाएं। इससे मस्से
नरम पड़ जाएंगे और धीरे-धीरे गायब हो जाएंगे।
15⇒ अरंडी के तेल की जगह कपूर के तेल का भी उपयोग कर सकते
है।
                  हैल्थ टिप्स ---
---- डा.भावित गोयल 98154 22889
   कोटकपूरा (जिला फरीदकोट)
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Friday, January 22, 2016

Vagitable name vocabulary

Wednesday, January 6, 2016

Gas ke liye upchar

गैस रोगों का उपचार - Treatment of Gas diseases

मानव के शरीर का अस्वस्थ होना ज्यादातर गैस की बीमारी से होता है । गैस की बीमारी  आधे से ज्यादा इंसानों में पाई जाती है । गैस से पीड़ित इंसानों के शरीर में कई प्रकार की बीमारी उत्पन होने लगती है । जैसे :- सिर में दर्द , जि मचलना , पेट का फूलना , पैरों में दर्द और भी कई प्रकार के  रोग गैस होने की वजह से हो जाते है । इसलिए मानव को गैस रोग का इलाज करना बहुत ही जरूरी है । इसका इलाज हम घर में रखी वस्तुओं से आसानी से कर सकते है । और गैस की शिकायत को दूर कर सकते है ।

गैस का सौंफ से उपचार :- 

सामान मात्रा में नींबू का रस निकालकर इसमें सौंफ डालकर भीगो कर रख दे । इस भीगी हुई सौंफ को खाना खाने के बाद सुबह शाम खाने से गैस की शिकायत दूर हो जाती है ।

गैस का नमक के द्वारा इलाज :-

सैंधा नमक    -  १ चम्मच
बूरा          - ४ चम्मच
देसी घी       - १ चम्मच

सैंधा नमक और बूरा इन दोनों को मिलाकर महीन करके चूर्ण सा तैयार कर ले । इस तैयार चूर्ण को देसी घी में मिलाकर सुबह - शाम खाए । ये क्रिया रोजाना एक महीने तक करने से गैस की बीमारी ठीक हो जाती है ।

सेब से गैस का इलाज :-

सेब एक ऐसा फल है । जो हमारे शरीर को अस्वस्थ होने से बचाता है । तथा सेब का रस तो और भी लाभदायक होता है । सेब का रस हमारे शरीर के पाचन हिस्सों पर एक हल्की सी परत बना देता है । यह परत  मनुष्य के शरीर में गैस बनने से रोकती है | और मनुष्य स्वस्थ रहने लगता है । इसलिए गैस से पीड़ित व्यक्तियों के लिए सेब का रस बहुत ही लाभकारी होता है । तथा ज्यादातर इस रोग से ग्रसित व्यक्तियों को सेब का रस रोजाना एक गिलास अवश्य पीना चाहिए |

काली मिर्च से गैस का उपचार :-

गैस रोग को दूर करने के लिए कम से कम १० काली मिर्च को बारीक़ पीसकर तथा पानी को हल्का गर्म करके इस गर्म पानी से पीसी हुई काली मिर्च को सुबह - शाम खाने से यह गैस रोग दूर हो जाता है ।

गैस का हींग के द्वारा इलाज :-

गैस की बीमारी को खत्म करने के लिए हींग का उपयोग बहुत ही फायदेमंद होता है । इसलिए हींग का उपयोग रोजाना करने से गैस की शिकायत नही होती है । हींग का उपयोग सब्जी या दाल बनाते समय किया जा सकता है । या फिर इसका उपयोग पानी के साथ फंकी लगाकर किया जा सकता है | हींग का उपयोग करने से गैस की शिकायत तो दूर होती है । बल्कि कब्ज भी नही होता है ।

लौंग से गैस का उपचार :-

लौंग एक ऐसी वस्तु है जो आसानी से हर जगह पर मिल जाती है । इसलिए लौंग का उपयोग गैस को बनने से रोकने के लिए अधिक फायदेमंद होता है |  पाँच लौंग को पीसकर चूर्ण तैयार कर ले । सबसे पहले थोड़ा सा पानी लेकर उबलने के लिए रख दे । तथा पानी को उबालते समय इस पानी में तैयार चूर्ण को डालें और पानी को ठंडा होने के लिए रख दे । जब ये पानी ठंडा हो जाये तब इस पानी को पी ले । इसी विधि को रोजाना करने से गैस की बीमारी से मुक्ति मिल जाती है । और गैस भी नही बनती है |

गैस का उपचार अजवायन से :-

  अजवायन  - ५ ग्राम
  काला नमक - २ ग्राम

इन दोनों को बारीक़ पीसकर महीन चूर्ण बना ले । इसी चूर्ण को प्रातकाल ताजे पानी के साथ खाने से गैस रोग ठीक हो जाता है | गैस रोग को ठीक करने के लिए एक और उपचार इस प्रकार है ।

अदरक -

अदरक  -----------       - ५ ग्राम
काला नमक पिसा हुआ   - १/२ चम्मच
नींबू का रस   ---------   - १ चम्मच

इन तीनों को अच्छी तरह से मिलाकर भोजन करने के बाद इसका सेवन करे । ऐसा करने से गैस रोग से मुक्ति मिल जाती है ।

इन सभी विधियों का उपयोग करने से गैस की बीमारी ठीक हो जाती है । बल्कि कब्ज की शिकायत भी दूर हो जाती है ।

Monday, January 4, 2016

Sanskrti Gyan


संस्कृति
जानिए सभी 18 पुराणों के बारे में – शास्त्र ज्ञान।

पुराण भारत की सबसे प्राचीनतम पुस्तके हैं। इन्हें स्वंय महर्षि वेदव्यास ने रचा था। पुराण हमे जीवन यापन की कला और प्राचीन कथाओं को बताते हैं। पुराणों का आधार त्रिदेव ही हैं। इनमें भगवान द्वारा बताये गये अद्भुत ज्ञान को सहज तरीके से बताया गया है। वेदों की भाषा अत्यंत कठिन है, कई वेदों के श्लोकों को तो आजतक कोई भी ज्ञानी भी नहीं समझ पाया है। पुराण वेदों की तरह ही है हमें अध्यात्म, सुक्ष्म ज्ञान, कला , भूगोल , अर्थशास्त्र, ज्योतिषी, कर्म की व्याख्या, भक्ति की महिमा और भी बहुत वस्तुओं को सहज भाषा में बताता है। पुराण वस्तुत 18 ही हैं। पुराण किसी ना किसी देवता के व्याख्यान और उनके महान कार्यों की स्मृति दिलाते हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है इन 18 पुराणों के बारे में।

1.पद्म पुराण

पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था। पुराण में आपको विष्णु भगवान के हजार नामों को अंकित करते हुए श्लोक भी मिलते हैं।

2.विष्णु पुराण

विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

3.ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

4.शिव पुराण

शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस ग्रंथ की कथा का आरंभ एक अधर्मी ब्रहाम्ण से होता है जिसकी भलाई के लिए उसकी पतिव्रता पत्नी माता पार्वती के साथ वार्तालाप करती हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5.भागवत पुराण

भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

6.नारद पुराण

नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7.मार्कण्डेय पुराण

अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं। इस महान ग्रंथ में भगवान विष्णु ने मनमंतर और कलियुग की आयु के बारे में भी बतलाया है। पुराण के अनुसार अभी सांतवा मनमंतर चल रहा है और पुरिंदर नामक इंद्र देवताओं के राजा हैं।

8.अग्नि पुराण

अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9.भविष्य पुराण

भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण

ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11.लिंग पुराण

लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12.वराह पुराण

वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13.स्कन्द पुराण

स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14.वामन पुराण

वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15.कुर्मा पुराण

कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16.मतस्य पुराण

मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

17.गरुड़ पुराण

गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

18.ब्रह्माण्ड पुराण

ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

यह लेख विभिन्न स्त्रोंतो से लिया गया है। हम सभी के हदृय से आभारी हैं।